- 13 Posts
- 57 Comments
आज जिसके पास धन हो उसे घोड़े बेचकर नहीं सोना चाहिए. और अगर धन काला हो तो नींद के बारे में सोचना ही बेकार है. धन एक दुल्हन की तरह होता है जिसे पर्दे में रखना जरूरी है. वैसे धन काला हो या सफेद, उसे नजर बहुत जल्दी लगती है. काले चोर की नजर का क्या ठिकाना. उसकी नजर हमेशा आपके धन पर ही रहती है. वैसे किसी चीज को बुरी नजर से बचाने के लिए हमारे यहां कई जुगाड़ है . मसलन अगर बच्चे को बुरी नजर से बचाना हो तो काला टीका लगा देने से उसे सरकारी स्कूल की नजर नहीं लगती और उसे पब्लिक स्कूल में एडमिशन मिल जाता है. ट्रक वाले तो भारी संख्या में बुरी नजर के सताए होते हैं. ये लोग बुरी नजर वाले का मुंह ही काला कर देते हैं. बुरी नजर से पीडि़त एक ट्रक पर तो मैंने यहां तक लिखा देखा – बुरी नजर वाले तू मेरा साला.
कुछ बड़े व्यापारियों ने नजर सुरक्षा कवच भी बाजार में उतारे हैं , जिन्हें हाथ या गले में पहना जाता है. काले घोड़े की नाल ज्यादा असरदार होती है. इसे पहनने से ब्लड प्रेशर कंट्रोल में रहता है. उसकी अंगूठी बनवाकर पहनी जाती है.
घोड़ों की बात निकली है तो इधर सुनने में आया है कि घोड़ों के व्यापार में बहुत रोकड़ा है. एक साहब ने इस धंधे में बहुत सारा धन कमा लिया. उनसे गलती ये हो गई कि वो अपने धन को सरकार की बुरी नजर से नहीं बचा पाए. सरकार का कहना है कि जिसे वो अपनी मेहनत की कमाई समझ रहे हैं, वो दरअसल काला धन है. सरकार घोड़े बेचकर थोड़े ही सो रही है कि आप धन पर धन कमाते रहें और उसे धेला भी न दें. सरकार को इससे कोई मतलब नहीं कि आप घोड़े बेचें या गधे. उसे आपकी कमाई से साल में एक बार हफ्ता चाहिए. हफ्ता बोले तो टैक्स. आप टैक्स नहीं देंगे तो जाहिर है आपके धन को बुरी नजर लगेगी. घोड़े बेजुबान होते हैं. वो रेस का मैदान छोड़कर आपकी रिटर्न भरने तो आएंगे नहीं. उनकी जिंदगी वैसे ही दांव पर लगी होती है. जीत गए तो सफेद घोड़ी के साथ डिनर और हार गए तो खच्चरों में गिनती. व्यापार करने के भी कुछ नियम होते हैं. पहला नियम तो यही होता है कि आप ग्राहक को संतुष्ट करने में माहिर हों. अगर आप घोड़े के व्यापारी हैं तो खरीदार भी कोई पेंशनर तो होगा नहीं. वह भी अकूत धन का मालिक होगा. उसका भी साल का करोड़ों का टर्न ओवर होगा. करोड़ों रुपये घोड़ों की रेस में लगाता होगा. और रेस हारने के बाद भी किसी अच्छे क्लब में अपनी शाम रंगीन करता होगा.
समझदार व्यापारी अपने धन को सरकार की बुरी नजर से बचाने के लिए टैक्स नाम का ताबीज अपनी दुकान में लगाते हैं. यह ताबीज उसे आयकर अधिकारियों की बुरी नजर से बचाए रखता है. काले की बात न भी करें तो धन हर तरह के व्यापार में पाया जाता है. यह सरकार तय करती है कि आपका धन किस ग्रेड का है या आप किस टाइप के व्यापारी हैं. आप भारत के टॉप टेन उद्योगपतियों में हैं या अव्वल दजें के टैक्स चोर है. घोड़े तो यूं ही प्रकाश में आ गए हैं. कोई आश्चर्य नहीं कि कल को यह भी सुनने को मिले कि कुत्तों के फलां व्यापारी के घर से काले धन की प्राप्ति हुई. या एक मच्छी के पकौड़े बेचने वाले पर करोड़ों का टैक्स बकाया. भैंस उद्योग में हालांकि घोड़ों की तरह ग्लैमर नहीं है , मगर दूघ , घी और मक्खन में बहुत फैट पाया जाता है. यहां मुर्गों को भी याद रखना चाहिए , क्योंकि चिकन फ्राई और चिकन बिरयानी जैसी वैराइटी घोड़ों के पास नहीं है….. !!!
— R K Telangba
rktelebaba@yahoo.co.in
Read Comments