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जागरण जंक्शन फोरम में आज – कल बलात्कार शब्द की ज़ोरदार चर्चा हो रही है. सब के विचार जानने और पढने के बाद मुझे लगा कि मैं भी अपने विचार आप लोगो के समक्ष प्रस्तुत कर दूँ . चूंकि बलात्कार शब्द ही एक घृणित और तुच्छ है जिस का उच्चारण करना भी एक अपराध बोध सा लगता है. आप सब ने इस जुर्म में लिप्त अपराधी को कड़ी से कड़ी सजा देने की वकालत की है. बात जायज़ भी है. हालाँकि मेरे ब्लॉग के शीर्षक को देख कर आप लोगो को कुछ आपत्ति भी हो सकती है. आप लोग कहेंगे कि बलात्कार भी क्या स्वेच्छा से होता है क्या ? अभी तक हमारी चर्चा उपरी तह तक ही सीमित है. हम ने कभी गहराई में जा कर इस घिनौने कृत्य को करने वाले की मानसिकता पर नही गये हैं. बलात्कार का मतलब तो सब को मालूम ही होता है – बलपूर्वक किसी का चीरहरण करना. ऐसी ख़बरें रोज़ अख़बारों में छपती हैं जिसे आम आदमी पढ़ कर कोसने के अलावा कुछ नही कर सकता. लेकिन आप लोगों ने कभी इस बात पर कभी गौर किया है कि एक अजीब सा सूक्ष्म बलात्कार हर वक्त हमारे चारो तरफ होता आ रहा है जिस कि तरफ हम ने कभी अपना ध्यान नही दिया. आज नारी जिस्म को हर विज्ञापन, टेलिविज़न और फिल्मो में जिस ढंग से परोसा जा रहा है वो भी एक बलात्कार ही है फर्क सिर्फ इतना है कि यहाँ सब कुछ नारी कि स्वेच्छा से हो रहा है. तेल, साबुन से ले कर कार तक को बेचना हो तो नारी को अर्धनग्न कर के प्रस्तुत किया जाता है. नारी की महत्वकांक्षा ही आज उसे पतन के गर्त में धकेल रही है. ज़रा सोचो सोंदर्य प्रतियोगिता के नाम पर नारी को निर्वस्त्र कर के मंच पर सरे आम घुमाया जाता है जो कि एक सामूहिक बलात्कार से कम नही है, ऐसे प्रतियोगिताओं में जीतने वाले को राष्ट्रीय सम्मान से जोड़ कर देखा जाता है. नारी स्वयं भी ऐसे प्रतियोगिताओं में शोषित होने के बावजूद अपने आप को धन्य महसूस करती है. आज के युग की फिल्म अभिनेत्रियाँ अश्लील से अश्लील दृश्य देने में ज़रा भी संकोच नही करती. क्या समाजिक मूल्यों के ह्रास का यह भी एक कारण नहीं है ? अब आप समझ सकते हैं कि समाज में नारी की क्या छवि बन चुकी है. आज के उपभोक्तावादी युग में नारी महज़ एक उपभोग की वस्तु बन कर रह गयी है. धन और यश की अंधी दौड़ में आज नारी ने स्वयं अपना अस्तित्व खो दिया है. फैशन के नाम पर बदन उघाडू वस्त्र पहन कर घूमना मनचलों को अपनी और आकर्षित करता है. जहाँ नारी का सम्मान नही होता वहां ऐसे हादसों का होना आम बात है. दिल्ली जैसे शेहरो में रोज़ बलात्कार की घटनाएं होती है क्यों कि महानगरीय संस्कृति में नारी की छवि अत्यंत चिंताजनक हो चुकी है. ऐसे में काफी हद तक इस तरह की घटनाओं में नारी की सहभागिता को जोड़ कर देखा जा सकता है. आग लगने पर पानी छिडकना सभी जानते हैं लेकिन क्या कोई ऐसे उपायों के बारे में सोचता है कि आग लगने से कैसे बचा जाए ? बलात्कारी को सजा देने मात्र से सामाजिक ढांचे में सुधार नही हो पायेगा. ज़रूरत यह है कि विकास की आड़ में जो सामाजिक पतन जो हो रहा है उसे कैसे बचाया जाए !!
R K Telangba
rktelebaba@yahoo.co.in
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