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गठबंधन धर्म – सर्वोच्च धर्म …

TelangBlog
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हम जैसे ही पैदा होते हैं तभी से ले कर हम विभिन्न बन्धनों में बंध जाते हैं. . फिर सम्पूर्ण जीवन हम उन बन्धनों से मुक्त नहीं हो पाते. जन्म होते ही माँ बाप के मोह बंधन में , फिर बचपन में दोस्तों की दोस्ती का बंधन , प्रेम हो जाए तो प्रेम का बंधन, फिर शादी का बंधन, फिर रिश्तेदारी का …. फिर समाज का या यूँ कहिये कि हर तरफ बंधन ही बंधन.. पूरा मकडजाल हर तरफ. . खैर जो भी बंधन हो मगर एक अटूट बंधन और है और वो है ‘गठबंधन’. अब ज़रा इसे परिभाषित करे तो यू कहा जा सकता है : गठबंधन वो रिश्ता है जो दो या दो से ज्यादा समान या बेमेल जोडियो को अटूट बंधन में बांधता है. यह कोई भावनात्मक सोच से उपजा हुआ रिश्ता नहीं है बल्कि खालिस व्यावसायिक,  व्यापारिक और राजनैतिक उद्देश्य से पनपे हुये अल्पकालीन या दीर्घकालीन लाभ हेतु किया जाने वाला एग्रीमेंट है जिस में मजबूर और मजबूत के आपसी सहमति से किये गए वादे और कसमे हो सकते हैं. . . गठबंधन एक बाई पास रास्ता है. जब मुख्य प्रवेश द्वार बंद हो जाए तो फिर मज़बूरी वश पिछले दरवाजे से प्रवेश करना पड़ता है और इस के लिए किसी भी तरह के समझोते करने पड़े तो एतराज़ नहीं होना चाहिए !
आइये अब गठबंधन के बारे में थोडा और विस्तार से जानें :  वैसे आज कल ज़माना ही गठबंधन का है. आज हर क्षेत्र में गठजोड़ है उदाहरण के तौर पर मारुती और सुजुकी का एक अत्यंत सफल गठजोड़ है. उसी तरह हीरो और होंडा आदि के गठजोड़ से हम भली भांति परिचित हैं . जोड़ – तोड़ और जुगाड़ तकनीक हमारे देश का सब से अनमोल तकनीक है . खैर ये तो रही आर्थिक जगत के गठबंधन की बात, अब हम जिस बंधन की बात करने जा रहे हैं वो है राजनैतिक गठबंधन जो कि आज समस्त रिश्तों, धर्मों, कर्तव्यों में सर्वोच्च माना गया है. स्वयं हमारे देश के माननीय प्रधानमंत्री महोदय यह बात कबूल कर चुके हैं. वर्तमान यू पी ए सरकार गठबंधन के धर्म को बड़े वफ़ा के साथ निभा रही है जिस से यह बात ज़ाहिर होता है कि गठबंधन का धर्म राष्ट्र धर्म से सर्वोपरि है. प्रधानमंत्री महोदय इस बात को हरगिज़ स्वीकार नही करेंगे कि किसी कारण वश उन्हें “बेवफा” का ख़िताब मिले और फिर समर्थन खो दें ..इस लिए वो मजबूर हैं. विपक्ष की कमान से निकले तीर शायद उन्हें ज़ख़्मी न कर पाए मगर अपनों के मुह से बेवफाई की तोहमत लगना उन्हें भीतर तक लहूलुहान कर सकता है. इस लिए उन की मज़बूरी का भरपूर फायदा उठा रहे हैं उन्हें समर्थन प्रदान करने वाले, लेकिन क्या करें ? महोदय की मज़बूरी महात्मा गाँधी की मज़बूरी से कई गुणा ज्यादा है. अब हमारे कहने का मतलब यह नही है कि प्रधानमंत्री महोदय भ्रष्ट हो गये हैं , जबकि वो अबतक के सब से ईमानदार मगर मजबूर प्रधान मंत्री हैं. अब यह बात जग ज़ाहिर है कि कोई इतना मजबूर हो और दुनिया उस की मज़बूरी का फायदा न उठाये, इस बात की कल्पना कैसे की जा सकती. अब देखिये न प्रधानमंत्री के शासनकाल में उन के मंत्रिमंडल के कुछ काबिल सदस्यों ने देश की खटिया खड़ी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी लेकिन माननीय महोदय के पास अपनी मज़बूरी का रोना रोने के सिवाय कोई चारा नही है. घोटाले इस से पूर्व भी होते थे., तब घोटालों की रकम हजारों या लाखों तक सीमित थी लेकिन अब अरबों और खरबों में घपले होने शुरू हो गए. . सुनने में आया है की इन घोटालों के महानायकों को जेलों में भी राजसी ठाट- बाट और खातिरदारियां की जा रही हैं. क्या करें हमारे प्रधान मंत्री महोदय तो दया के , मेरा मतलब सहानुभूति के पात्र हैं. गठबंधन धर्म निभाते – निभाते चोरों, लुटेरों, डाकुओं से नाता जुड ही गया हो तो कैसे अपने आप को उन की नज़रों से गिरा सकते हैं, क्यों कि वो सदाचारी और ईमानदार प्रधानमंत्री हैं इस लिए गठबंधन धर्म है निभाना पड़ता है. यह गठबंधन चाहे तो पुलिस और जेबकतरे का हो सकता है, अफसर और नेता का हो सकता है, व्यापारी और एजेंट का हो सकता है, वेश्या और दलाल का हो सकता है, किसी का भी हो सकता है. बात यहाँ इस धर्म को निभाने की है. यहाँ एक की मज़बूरी दूसरे की मजबूती का कारण बन जाती है. अब देश की जनता इन सब चीज़ों की आदि हो चुकी है और अगर रोज़ कोई न कोई घोटाले की ब्रेकिंग न्यूज़ न मिले तो खाना भी ठीक से हज़म नहीं हो पाता. चलो मज़बूरी का नाम महात्मा गांधी तो अब तक सुनते आ रहे थे मगर अब शायद इस मुहावरे में थोडा बदलाव आने वाला है.. अब यह शायद कुछ इस तरह से लिखा जाएगा : “मज़बूरी का नाम – मनमोहन सिंह”

R K Telangba
rktelebaba@gmail.com

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