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तिरंगे पर राजनीति

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लाल चौक पर तिरंगा लहराने का मुद्दा गरमाता जा रहा है. मौजूदा सरकार को डर है कि कहीं इस से हालत बिगड़ न जाए, वहीँ विपक्ष सरकार की इस कमजोरी को भरपूर तरीके से भुनाना चाहता है . आज तथाकथित राजनेता देशभक्ति की आड़ में अपना स्वार्थ सिद्ध करने में लगे हुए हैं जहां मौजूदा सरकार अलगाववादी ताकतों के आगे नतमस्तक है वहीँ विपक्ष इस कमजोर घडी में अपनी राजनितिक रोटियाँ सेंकने की फ़िराक में है. जिस कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग कहा जाता रहा है वहां हालत इतने बदतर होने क्यों दिया गया जब राश्ट्रीय ध्वज फहराने की बात पर आज खून खराबा और दंगा फसाद होने की आशंका जताई जा रही है. सरकार क्यों हर बार ऐसे मामलों में शुतुरमुर्ग की तरह अपना सर रेत में छुपा देती है. ऐसी क्या मज़बूरी हो सकती है जिस के चलते अलगाववादी ताकतों को पनपने का भरपूर मौका दिया जाता है. स्थानीय जनता शांति चाहती है लेकिन राजनीतिक स्वार्थ के चलते शांति बहाल होने नही दिया जाता है और हर बार जनता को गुमराह किया जाता रहा है. अयोध्या में भी विवादस्प्रद मंदिर – मस्जिद ज़मीन मुद्दे पर हाई कोर्ट का फैंसला आने से पहले इसी तरह की आशंका जताई जा रही थी और देश भर से सैनिक और अर्द्ग सैनिक बलों को वहां बुलाया गया था लेकिन वहां की जनता ने बहुत ही समझदारी पूर्वक अदालत के फैंसले का सम्मान किया था जो की काबिले तारीफ है. इस के पीछे जनता की परिपक्व सोच थी जिस के कारण वहां ऐसी कोई अप्रिय घटना नहीं घटी.
कश्मीर में भी कुछ अरसे से कुछ शांति कायम है लेकिन अलगाव वादी विचार धारा के चलते अभी कुछ नहीं कहा जा सकता. आज वोट की राजनीति को देश प्रेम से उपर आँका जा रहा है और अपने वोट बैंक की खातिर ऐसा कोई कदम नही उठाना चाहते जो भले ही देश हित के लिए हो. कश्मीर में आज हालात इतने बदतर क्यों है जिस के चलते जनतंत्र दिवस जैसे राष्ट्रीय उत्सव के अवसर पर तिरंगा फहराने में हिचकिचाहट हो रही है. आज कश्मीर के मुद्दे पर भरपूर राजनीति हो रही है . आज वहां स्थानीय नेताओं कि स्वार्थ पूर्ण नीति के कारण आम आदमी का जीवन दूभर हो गया है. युवा वर्ग बेरोज़गारी कि दंश झेल रहे हैं जिस के कारण वो गुमराह हो कर अलगाववाद और आतंक की राह पर चलने को मजबूर हो जाते हैं. जहां तक तिरंगे को फहराने की बात है सिर्फ तिरंगा फहरा देने से राष्ट्र प्रेम दर्शाया नहीं जाता. राष्ट्र अगर बनता है तो जनता की भावनाओं से बनता है. अगर जनता के दिल में राष्ट्र प्रेम जागृत करना है तो सब से पहले जनता की समस्याओं का निदान करना ज़रूरी है और वहां रोज़गार के अवसर पैदा किये जाएं. अगर जनता समृद्ध हो और उस का भविष्य सुरक्षित हो तो अपने आप राष्ट्र का निर्माण होता है. बंदूकों के साए में राष्ट्र प्रेम जागृत करना किसी भी सूरत में तर्क संगत नहीं कहा जा सकता. इस लिए हालात सुधारने के बाद गर्व से वहां तिरंगा फहराया जा सकता है. .. …
R. K. Telangba
rktelebaba@gmail.com

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