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आम आदमी की दास्तान

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आम आदमी हुक्का गुड़गुड़ाता है, चिलम पीता है और वो ना मिले तो बीड़ी सुलगाता है . हुक्का बचे ही कितने हैं और न अब वो शौक रहा हुक्का-पानी बंद करने वाला . इसी लिये हुक्के का क्रेज़ ख़त्म हो गया . वैसे अच्छी चीज़ थी हुक्का, बस गुड़गुड़ाते रहो और खाँसते रहो. जब दम में दम आए तो सरकार के बारे में दो बात कर लो . पर अब सरकार ने हुक्का पीने लायक छोड़ा कहाँ . न हुक्का रहेगा और न सरकार के बारे में बात कर सकेगा . अच्छी तरकीब है ….
आम युवा दिन भर ताश- छोलो खेलने में बिता देता है और शाम को मां – बाप की चिक चिक सुनता है . “दिन भर देखो तो बस ताश – छोलो में लगा रहता है. ये न करे कि दो घड़ी किताब उठा के पढ़ ले.” आम युवा एक कान से सुनता है और गागर से पानी निकाल गड-गड-गड ऊपर से गले में उतारता हुआ देहरी के बाहर निकल जाता है.
आम आदमी भागती ट्रेन में चढ़ते हुए अगले महीने की ई.एम.आई. और तमाम बिलों का हिसाब जोड़ लेने के बाद सोचता है कि हाथ में कुछ आता ही नहीं. है तो बस मोबाइल जिस पर फलाँ कंपनी के फ़ोन आते हैं तो कभी फलाँ कंपनी के, घर अब लाखों से निकलकर करोड़ों में पहुँच गया है . आम आदमी का सपना अब आम भी नहीं रहा. अब वो सपना भी छलावा सा हो गया है. आखिर उस सपने का क्या नाम दें ? जिस के पूरे होने की चाहत बीते 20 बरस पहले पूरी हो सकती थी. आम आदमी है कि शेयर मार्केट के उठने पर खुश हो जाता है . चलो देश तरक्की कर रहा है. मगर जब राशन की दुकान पर जाता है तो 50 रुपए किलो चीनी पाता है, वहाँ से दाँत खट्टे करके उलटे पाँव वापस लौटते हुए बीवी से भिड़ता है. चैनल बदलता है और सरकार में अर्थशास्त्रियों के होने की बात पर गाली बकता हुआ फ्रिज खोलकर गट-गट-गट करता हुआ तमाम पानी पी जाता है. वो आम आदमी एक बच्चे की अंग्रेजी स्कूल की फीस और तमाम खर्चों से डरकर अब एक के बाद दूसरा बच्चा पैदा करने से भी डरता है.
आम आदमी पूरे पाँच साल टूटी सड़क पर अपना दुपहिया चलाता है, ट्रेन के धक्के खाता है, बस में अपनी जान गँवाता है. पानी के लिये सुबह से ही लम्बी लाइन लगाता है. सरकार में, क्रिकेट में, नौकरशाही में घपले होते चुपचाप देखता है. नेताओं को भरी सभा में एक दूसरे पर जूते – चप्पल फैंकते देखता है और फिर अगले रोज़ टी.वी. के सामने उन्हें गले में हाथ डाले हुए मौज मारते देखता है, उनकी तमाम अंट -शंट बातें सुनता है. महंगाई के नाम पर नेताओं को आपस में वोट डालते देखता है, हँसते-खिलखिलाते देखता है. “महंगाई बढ़ेगी” बोलते हुए उन नेताओं को हँसते-खिलखिलाकर कहते हुए कि “हम जीत गये” देखता है. बडबडाता हुआ आम आदमी गाली बकते हुए कि “नेताओं ने देश को बर्बाद कर दिया”, सो जाता है.
आम आदमी उन्हीं टूटी सड़कों के किनारे तम्बू के नीचे खड़े होकर फिर से उन्हीं नेताओं की बातें सुनता है. हम विकास करेंगे, खुशहाली लायेंगे, महंगाई कम करेंगे जैसी तमाम बातें सुनता है, ताली बजाता है, लाइन में खड़े हो कर चिलचिलाती धूप में पसीना पोंछते हुए वोट डालता है. फिर इंतज़ार करता है कि “अबकी सरकार किसकी बनेगी ?” जैसे तमाम सवाल एक दूसरे से करता है , आम आदमी आम ही रह जाता है. उस टूटी सड़क और सामने बह रहे गंदे नाले की तरह वो कभी नहीं बदलता. हर बार बस पाँच साल बदलते है . लेकिन ये आम आदमी  कभी नही बदलता …… !!!
– – R K Telangba
rktelebaba@gmail.com

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