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एक नाश्ता मढ़ी में

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बात 17 अक्तूबर की है. मैं किसी काम से केलंग जा रहा था. सुबह 7The Dhaba बजे के करीब मनाली से रवाना हुआ. करीब नौ बजे हम मढ़ी पहुँच गए. चाय नाश्ता करने के लिए हम गाड़ी से उतर गये. मैं इस ढाबे में घुस गया. चाय और परांठे का आर्डर दिया. कुछ देर बाद एक छोटा सा मैला कुचेला बिहारी लड़का चाय ले कर आ गया. .. चाय की शक्ल बता रही थी की यह करीब तीन या चार घंटे पहले ही बना कर रख दी गयी थी और ग्राहकों के आने पर जल्दी से गर्म कर के परोस दिया जाता … एक दो चुस्की लेने के बाद मैंने चाय को बिना पिए ही छोड़ देना उचित समझा … फिर वही लड़का परांठा भी ले कर आ गया.. परांठा भी खुद अपनी दास्ताँ सुना रहा था… ऐसा लग रहा था कि इस परांठे को तीन चार बार तल कर परोसा जा रहा है मानो कई ग्राहकों ने रिजेक्ट कर दिया हो और अंत में मुझे परोसा गया … बमुश्किल आधा परांठा खा कर आधा छोड़ कर उठ गया. .. वहां काउंटर पर बैठे शख्स से बिल माँगा, मैंने पचास का नोट उस के हाथ में थमा दिया और उसने मुझे पन्द्रह रूपये वापिस दिए. . मैंने उत्सुकतावश पूछा कि इतना बिल कैसे बना ? तो जवाब मिला चाय दस रूपये की और परांठा पच्चीस रूपये. मुझे ताजुब हुआ और मेरा ऐसा पूछना शायद उस शख्स को अच्छा नही लगा. बिलकुल बेकार नाश्ते के बदले मुझ से एक अच्छे खासे रेस्टोरेंट के बिल के बराबर वसूला जा रहा था … खैर मैंने ज्यादा मुंह लगाना उचित नही समझा. .. फिर सोचा चलो रास्ते के लिए कुरकुरे का एक पेकेट ले लूँ. पेकेट हाथ में ले कर मैंने उसे बीस रूपये देने लगा तो वो पच्चीस रूपये मांगने लगा. .. मैंने उन्हें बताया की पेकेट पर तो बीस रूपये लिखे हुए हैं, इस बार काउंटर पर बैठा वही शख्स आँखे दिखाते हुए मुझ से बोल पड़ा , “लेना है तो ले लो नही लेना है तो कोई ज़बरदस्ती नहीं है ”
मैं पच्चीस के बजाय तीस रूपये भी दे देता क्यों की कई बार इस से ज्यादा रकम हम भिखारियों को दे देते हैं. मगर उस शख्स के व्यव्हार से मैं तिलमिला कर रह गया. .. मैं चाहता तो उसी वक़्त उसे दुनियादारी सिखा देता मगर कीचड़ में पत्थर फैंकना उचित नहीं समझा. .. मैं कुरकुरे का पेकेट काउंटर पर पटक कर बाहर निकल आया… …
यह लेख मैं सिर्फ इस लिए लिख रहा हूँ क्यों कि यही घटना आप के साथ भी घट सकती है. … आप भी लूट – खसूट के शिकार हो सकते हैं….
— R K Telangba

rktelebaba@gmail.com

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